लगभग 450 वर्ष पूर्व भगवान् महावीर की मूंगावर्णी प्रतिमा का चांदनगाँव में भूगर्भ से उद्भव हुआ। और बस तभी से इतिहास के पन्नो पर श्री महावीरजी क्षेत्र अपने अतिशय के लिए विख्यात होता गया।
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी में प्रभु प्रतिमा का भूगर्भ से उदभव होना भी एक बड़ा अतिशय है। एक चर्मकार की गाय प्रतिदिन गंभीर नदी के तट के पास पर एक टीले पर आती और उसका दूध स्वत झर जाया करता था। बिना दूध के गाय के घर लौटने पर चर्मकार को अनेक आशंकाएं हुई। एक रात उस चर्मकार ग्वाले को स्वप्न आया कि एक अत्यन्त चमत्कारी प्रतिमा टीले के नीचे दबी है और यह गाय उसे ही अपना दूध समर्पित करती है। दूसरे दिन चर्मकार ने जब अपनी आँखों से टीले पर स्वतः दूध समर्पण का अद्भुत दृश्य देखा तो उसने टीले को खोदने के भाव बनाये। टीले से भगवान् महावीर की मुंगावर्णी पद्मासन प्रतिमा का उदभव होते ही टीले वाले बाबा की गूँज सा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया। अनेक प्रयास करने के बाद भी प्रतिमा को हिण्डौन ले जाना संभव नही हो पाया। तब चांदनपुर में बसवा निवासी दिगम्बर जैन अनुयायी श्री अमरचन्द जैन बिलाला के द्वारा एक ऐसा मन्दिर बना जिसे स्थान और समय का स्वयं महावीर भगवान् ने चुनाव किया था। अतिशय से प्रारम्भ हुई मन्दिर जी की गाथा आज भी अपने साथ अनेक अतिशयों की रचना कर रही है। अतिशय, भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति समेटे श्री महावीरजी का मन्दिर... ऊर्जा का अनन्त स्त्रोत है।
प्रातः 5.00 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक
प्रातः 7.30 बजे से 9.00 बजे, दोपहर 2.30 बजे से 4.00 बजे
सायं 6.45 बजे
प्रातः 10.00 बजे से 12.00 बजे रात्रि 8.00 बजे से 9.00 बजे
प्रातः 6.00 बजे
प्रातः 5.00 बजे से रात्रि 10.00 बजे तक