जैन कला एवं संस्कृति के संरक्षण प्रदर्शन एवं संवर्द्धन का प्रमुख केन्द्र अतीत व वर्तमान की जैन कला एवं संस्कृति की अमूल्य धरोहर एवं विरासत को सहेजकर भावी पीढियों को हस्तांतरित करना । संग्रहालय हेतु जैन पुरातत्व व पुरामहत्व की कलाकृतियों मूर्तियों तथा सांस्कृतिक महत्व की वस्तुओं का (क्रय, भेंट, सर्वेक्षण, अनुबन्ध आदि) द्वारा संग्रहण, परिरक्षण, सुरक्षा, प्रदर्शन, शिक्षण, अन्वेषण, शोध एवं ज्ञानवर्द्धन करना ।
जैन धर्म वीथिका - जैन धर्म वीथिका - प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से चौबीसवें तीर्थंकर महावीर तक की शास्त्रोक्त लक्षण युक्त वर्णानुसार प्रतिमाएं, टेराकोटा, पाषाण एवं रत्न प्रतिमाए, तीर्थंकर महावीर के जीवन कथानकों के चित्रादि प्रदर्शित हैं ।
जैन मूर्तिकला वीथिका -प्राचीन जैन प्रतिमाए, तिरसठ शलाका पुरूष प्रतिमा, त्रिकाल चौबीसी, पंचबालयति, गंधकुटी में विराजमान तीर्थंकर, अर्हंत, त्रिरत्न एवं यक्ष और यक्षिणी प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं ।
श्री महावीरजी वीथिका - मूलनायक श्री महावीरजी प्रतिमा के उद्भव, प्रकट होने की झॉकी, प्राचीन सिंहासन, श्री महावीरजी ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में, चरण चिन्ह, मानस्तम्भ, स्तूप, कटला, वार्षिक रथयात्रा, मेला महामस्तकाभिषेक आदि दर्शनीय है ।
जैन स्थापत्य कला वीथिका - भारतवर्ष में स्थित प्रमुख दिगम्बर जैन तीर्थ/मंदिरों के चित्र, जैन वास्तुशिल्प, समवसरण रचना, तोरण द्वार, बावन जिनालय स्वरूप, नंदीश्वर द्वीप आदि ।
जैन कला एवं साहित्य वीथिका - प्राचीन अष्टधातु प्रतिमाएं, संगमरमर प्रतिमाएं, निराकार सिद्ध भगवान, मुहर, सिक्के, यंत्र, मंत्र, बीजाक्षर, ताम्रपत्र, चित्रित पाण्डुलिपियॉ, संसार दर्शन, मधुबिन्दु, फड़चित्र भगवान ऋषभदेव प्रणीत षटकर्म, भगवान महावीर के पंच कल्याणक, चन्दनबाला द्वारा आहार दान, रेख चित्र, अभिलेख, आयागपट्ट एवं चित्रांकन आदि दर्शनीय है।
जैन जीवन शैली वीथिका - मंदिरजी में उपयोग की गई प्राचीन वस्तुएं पंचमेरू, सिंहासन, श्रीघण्ट, दीप, कलश, पूजन सामग्री, पात्र, चॅवर, प्रभामण्डल, छत्र, जैन प्रतीक चिन्ह, ध्वज, अष्ट प्रतिहार्य, अष्ट मंगल, क्षेत्रपाल जी का कवच, श्री महावीरजी का पोस्टल स्टैम्प, पिक्चर पोस्टकार्ड एवं मुहर, जैन मुनि चित्र, कमण्डलु एवं मयूर पिच्छी आदि दर्शनीय है ।
संग्रहालय स्थापना -
यह प्रसन्नता का विषय है कि जैन कला एवं संस्कृति को सुरक्षित रखने एवं इसकी निरन्तरता को बनाये रखने में जैन तीर्थक्षेत्रों, मंदिरों, साधु-साध्वियों, पण्डितों, विद्वानों, गुरूकुलों एवं श्रेष्ठियों का व्यक्तिगत तथा सामाजिक स्तर पर किये प्रयत्नों का एवं स्वाध्याय, प्रवचन, शास्त्र सभाओं, शास्त्र भण्डारों आदि परम्पराओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है । किन्तु अनेक प्रयासों के उपरान्त भी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व की अनेक अमूल्य जैन सामग्री उचित संरक्षण एवं देखरेख के अभाव में यत्र-तत्र बिखरी हुई है । हमारी पुरामहत्व की मूतियॉं, दुर्लभ ग्रंथ एवं कला वस्तुओं का उचित व वैज्ञानिक रीति से संरक्षण के अभाव में नष्ट या क्षीण, चोरी या तस्करी हो रही है ।
अतः प्रबन्धकारिणी कमेटी, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा जैन कला एवं संस्कृति के संरक्षण हेतु म्युजियम ऑफ जैन आर्ट एण्ड कल्चर ( जैन कला एवं संस्कृति संग्रहालय ) की स्थापना श्री महावीरजी में की गई है । संग्रहालय का वातानुकूलित भवन मुख्य मंदिर से पूर्व में सन्मति धर्मषाला के निकट स्थित है । वर्ष 2007 ई. से संचालित इस संग्रहालय का अवलोकन कर लाखों देषी-विदेषी तीर्थ यात्रियों दर्षकों ने लाभ लिया है ।
निवेदन / अपील आपके पास या आपके मंदिरों, तीर्थक्षेत्रों, संस्थानों आदि में उपलब्ध पुरामहत्व की सामग्री जो जैन समाज के ज्ञानवर्द्धन एवं धर्मलाभ के लिए उपयोगी है उसे जैन कला एवं सस्कृति संग्रहालय श्री महावीरजी में प्रदर्शनार्थ भेंट कर सकते हैं । यह संग्रहालय उपलब्ध कराई गई सामग्री को उचित संरक्षण एवं आवष्यक देखरेख करेगा । जैन संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए इस संग्रहालय के विकास एवं विस्तार तथा प्रचार-प्रसार के पावन प्रयास में आपका बहुमूल्य सहयोग प्राप्त होगा ।